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मन में नफरत, निन्दा, वैर, ईर्ष्या के भाव से इन्सान पतन की ओर जाता है

चंडीगढ़, 22 मई, 2025 (वरिष्ठ ब्यूरो प्रमुख श्री नरिंदर चावला) – जिस प्रकार किसी बर्तन से जब तक गंदा पानी बाहर नहीं निकाला जाता, तब तक उसमें साफ पानी नहीं भरा जा सकता, ठीक उसी प्रकार जब तक हम अपने मन से किसी के प्रति नफरत, निन्दा, वैर, ईर्ष्या के भाव नहीं निकालते, तब तक हमारे मन में प्यार व नम्रता के भाव उत्पन्न नहीं हो सकते। ऐसे मनोभाव इन्सान को मानसिक विकास की बजाय पतन की ओर ले जाते हैं। यह प्रेरणादायक उद्गार आज यहां सैक्टर 30 स्थित संत निरंकारी सत्संग भवन में आयोजित महिला समागम में हज़ारों की संख्या में उपस्थित श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए प्रचारक बहिन सिमरन वर्मा जी ने व्यक्त किए।

बहिन वर्मा ने जीवन में आने वाली चढ़ाई-उतराई की स्थितियों का सामना धैर्य और सहजता से करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि यदि हमें हर समय संसार के मालिक की याद बनी रहे तो फिर दुख भी उतना नहीं सताता जितना हम समझते हैं।

अपनी मानसिक स्थिति को सदैव खुश रखने के संदर्भ में बहिन जी ने कहा कि हम कई बार दिखावे में आकर अनावश्यक चीजें हासिल करने की होड़ में घर का माहौल बिगाड़ लेते हैं, जबकि वास्तव में उनकी कोई आवश्यकता नहीं होती। हमें परमात्मा की दी हुई चीजों में संतुष्ट रहते हुए धन्यवाद करते हुए अपने कर्तव्यों का सही ढंग से निर्वहन करना चाहिए।

इसके अतिरिक्त किसी की निन्दा करने या सुनने से बचने की प्रेरणा देते हुए बहिन वर्मा ने कहा कि निन्दा सुनने में हमें भले ही मजा आए, लेकिन इसका हमारे मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है और हम घर के सदस्यों के प्रति भी वैसा ही दृष्टिकोण अपनाने लगते हैं। इसलिए न तो कभी किसी की निन्दा करनी चाहिए और न ही सुननी चाहिए।

उन्होंने बुजुर्गों के सम्मान और सेवा पर बल देते हुए कहा कि हम यह भूल जाते हैं कि एक दिन हमें भी इस अवस्था में पहुंचना है। बुजुर्गों के आशीर्वाद में असीम शक्ति होती है। हमें माता-पिता और घर के बुजुर्गों की सेवा करते हुए कभी भी संकोच नहीं करना चाहिए।

समागम के दौरान अनेक बहनों ने भक्ति भाव से ओतप्रोत भजन, कविताएं, स्किट और व्याख्यान प्रस्तुत किए।

इससे पूर्व चंडीगढ़ के जोनल इंचार्ज श्री ओ.पी. निरंकारी ने कहा कि सत्गुरु माता सुदीक्षा जी ने हमें ब्रह्मज्ञान प्रदान कर निरंकार प्रभु का साक्षात्कार करवाया है। जीवन का मुख्य उद्देश्य आत्मा का परमात्मा से एकत्व करना है, जिसके लिए सत्संग, सेवा और सिमरन अनिवार्य हैं।

कार्यक्रम के संयोजक श्री नवनीत पाठक जी ने समागम को सफल बनाने में योगदान देने वाले सभी सेवकों और उपस्थित श्रद्धालुओं का धन्यवाद व स्वागत किया।

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