आत्मसुधार से जगत सुधार का दिव्य संदेश देते हुए 78वें निरंकारी संत समागम का भव्य समापन
समालखा, 4 नवम्बर 2025:- 🖋️ दि फ्रीवे ईगल डेस्क रिपोर्ट
परमात्मा के बनाऐं खूबसूरत जगत का विवेकपूर्ण सदुपयोग करें – सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज
78वां वार्षिक निरंकारी संत समागम आत्मसुधार से जगत सुधार का संदेश देते हुए प्रेम और भक्ति के वातावरण में संपन्न हुआ। समालखा स्थित संत निरंकारी सत्संग भवन परिसर में आयोजित इस समागम के समापन दिवस पर सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने लाखों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि —
“निराकार परमात्मा ने जो यह जगत बनाया है, उसकी हर चीज़ अत्यंत खूबसूरत है। मनुष्य इस रचना का आनंद अवश्य ले, पर विवेक बुद्धि को जागृत रखते हुए इसका सदुपयोग करे, दुरुपयोग नहीं।”
🌼 आत्ममंथन से आत्मिक और मानसिक विकास का संदेश
सतगुरु माता जी ने कहा कि आत्ममंथन की दिव्य प्रक्रिया हमें मानसिक और भावनात्मक रूप से सशक्त बनाती है। जब मनुष्य हर कर्म में ईश्वर का अहसास रखता है, तो जीवन में शांति और सुकून का अनुभव होता है। उन्होंने कहा कि कठिन परिस्थितियों में भी आत्मचिंतन हमें संतुलन बनाए रखने और तनाव से मुक्त होने में सहायता करता है।
गुरु की सिखलाई के अंतर्गत रहकर किया गया आत्ममंथन हमें आत्मिक ऊर्जा से भर देता है और जीवन को सुंदर दिशा प्रदान करता है।
🌸 दृष्टिकोण ही जीवन का आधार
सतगुरु माता जी ने दृष्टिकोण की शक्ति को उदाहरण द्वारा समझाते हुए कहा कि —
“एक व्यक्ति बगीचे में जाकर कहता है कि यहां तो कितने कांटे हैं, वहीं दूसरा कहता है — कितने सुंदर फूल और कितनी सुगंध है। फर्क केवल नजरिये का है। भक्त हमेशा सकारात्मकता को अपनाते हैं और गुणों के ग्राहक बने रहते हैं।”
उन्होंने श्रद्धालुओं को प्रेरित किया कि वे समागम से मिली शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाएं और इस दिव्यता को संपूर्ण मानवता तक पहुंचाएं।
🙏 समापन सत्र में शुकराना और आभार
समापन सत्र के दौरान समागम कमेटी के समन्वयक एवं संत निरंकारी मंडल के सचिव आदरणीय जोगिंदर सुखीजा जी ने सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज और निरंकारी राजपिता जी का दिव्य आशीर्वाद के लिए शुकराना किया। उन्होंने सरकारी विभागों और सभी सहयोगियों का भी आभार प्रकट किया, जिनकी मदद से समागम का सफल आयोजन संभव हुआ।
सुखीजा जी ने कहा कि इस बार पहले से भी अधिक संगतों ने समागम में भाग लिया, जो मिशन के प्रति बढ़ते प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक है।
🪶 कवि दरबार में झलकी आत्ममंथन की अनुभूति
इस वर्ष समागम के चारों दिनों में कवि दरबार का आयोजन किया गया, जिसमें कुल 38 कवियों — बाल, महिला और पुरुष — ने ‘आत्ममंथन’ विषय पर आधारित कविताएं हिंदी, पंजाबी, अंग्रेजी, हरियाणवी, मुलतानी, मराठी और उर्दू भाषाओं में प्रस्तुत कीं। श्रोताओं ने कविताओं का भरपूर आनंद लिया और तालियों से कवियों का उत्साहवर्धन किया।
👉 निष्कर्ष:
समालखा की पवित्र धरती पर संपन्न हुआ यह समागम आत्मिक जागृति, मानवीय एकता और सकारात्मक दृष्टिकोण का सजीव उदाहरण बनकर उभरा। सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज का संदेश — “आत्मसुधार से ही जगत सुधार संभव है” — आज भी साध संगत के हृदयों में गूंज रहा है।





